
गीतकार एवं संगीतकार: ललित शास्त्री
“माधव केशव परब्रह्म” एक ऐसा भक्ति गीत है जो श्रोता को सनातन अध्यात्म की अनंत धारा में डुबो देता है। ललित शास्त्री द्वारा रचित एवं संगीतबद्ध यह भजन अपनी लयबद्ध पुनरावृत्ति, गूढ़ उपासना और शास्त्रीय सौंदर्य के लिए विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
गर्भित भक्ति और शब्दों की शक्ति
संस्कृत श्लोकों की शैली में रचित यह भजन माधव, केशव, वासुदेव, जगदीश, योगेश्वर जैसे परमात्मा के विविध रूपों का स्मरण कराता है। ये सभी नाम एक दिव्य अनुक्रम (sequence) में पिरोए गए हैं, जो पुराण, उपनिषद और भक्ति परंपरा से गहराई से जुड़े हैं। प्रत्येक नाम एक आध्यात्मिक कंपन उत्पन्न करता है, जो भीतर समर्पण की भावना को जाग्रत करता है।
संगीत का संयोजन
सितार, पखावज, बांसुरी, शहनाई, तबला, और घंटी जैसे पारंपरिक वाद्य-यंत्रों का समन्वय इस रचना को एक आध्यात्मिक यज्ञ का स्वरूप देता है।
गंभीर और गूंजता गायन मंत्रों की तरह उच्चारित शब्दों को जैसे गहराई देता है। बांसुरी की मधुर तानें श्रीकृष्ण की उपस्थिति का आभास कराती हैं, वहीं तबला और पखावज की संगत एक स्थिर, दिव्य लय बनाए रखती है।
शैली और प्रभाव
यह भजन पारंपरिक वेदपाठ और भक्तिपूर्ण भजन की शैली में रचा गया है। इसका दोहराव, मानो किसी जप की तरह, मन को एकाग्र करता है और चेतना को अंतरमुखी बनाता है। इस रचना में कोई सजावटी प्रदर्शन नहीं, बल्कि भक्ति की सादगी और संगीत की आत्मा है।
अंत तक आते-आते जब “राधेश राधेश” की पुनरावृत्ति होती है, वह केवल एक पंक्ति नहीं रह जाती, वह एक आंतरिक समर्पण की अभिव्यक्ति बन जाती है।
“माधव केशव परब्रह्म” केवल सुनने के लिए नहीं है, यह एक अनुभव है। यह भजन पारंपरिक आस्था को आधुनिक भक्ति-संवेदना से जोड़ता है। ललित शास्त्री ने इसे केवल रचा नहीं, बल्कि साधना की तरह जीया है। यह रचना मंदिरों, घरों और हर उस हृदय में गूंजने योग्य है जहाँ दिव्यता को सादगी के माध्यम से पाया जाता है।