आनंद प्रकाश की फेसबुक वॉल से साभार

ये पांच डायलॉग लिखे ही क्यों ? **** क्या समझता है अपने आपको ? अरे वही, तुम्हारा मनोज मुलजिम!
मैंने टोका, ” नाना, मुलजिम नहीं मुंतशिर ! बोले, “पहले था,अब तो मुलजिम। कहता है पांच डायलॉग पर आपत्ति है, बदल देते हैं, बात खत्म। खत्म कैसे हो गई ? यह तो ऐसे ही हुआ, गरदन काट कर बालों में कंघी करना।”
नाना का उबाल पतीले से बाहर निकले जा रहा था, “बेवकूफ समझता है सबको। तेरे घटिया, नफरती और हद दर्जे के बेहूदे डायलॉग ने सनातनी आस्था पर जो चोट पहुंचाई है, धार्मिक भावनाओं की जिस तरह छीछालेदर की है, हिंदुओं की सांस्कृतिक विरासत पर प्रहार और आम आदमी की संवेदनाओं पर गहरी चोट, अक्षम्य अपराथ है। ऊपर से जले पर नमक, कहता है : माफी नहीं मांगूंगा।
*** मीडिया
और ये मीडिया चैनल, मुर्गे लड़ा रहे हैं अपनी-अपनी डिबेट में। चार इधर के, चार उधर के। इंटरव्यू लिए जा रहे हैं। गले की घंटी खोल दी, जो चाहे कह रहा है यह निकम्मा। जरा सुनिए,मुझे तो कोई आपत्तिजनक बात नहीं लगी फिल्म में। जलने वालों की जली होगी, तभी लिखा है जली, अब जली तो जली! यह भाषा है इस टपोरी की।
*** लिखे ही क्यों ?
मैंने विराम लगाया, “नाना आप इतने उत्तेजित क्यों हो रहे हैं, कोई खास कारण ?, कारण तो है , नाना ने पोटली खोली, “आपत्ति तो सारी फिल्म से है, उसे पांच डायलॉग में सीमित क्यों किया जा रहा ? चलो मान लेते हैं पांच डायलोग, कोई उससे यह क्यों नहीं पूछता कि तूने ये पांच डायलॉग लिखे ही क्यों?
क्या आपको लगता है कि वह इतना भोला और मासूम है कि उसे प्रतिक्रिया की आशंका ही नहीं थी ? वह बेहद चालाक, धूर्त और मक्कार है। उसे अच्छी तरह पता था आक्रोश सुनामी का। फिर भी लिखे, आखिर क्यों? कौन सी मजबूरी ? कौन सा दबाव ? अरे हिम्मत है तो साफ-साफ बोल कितनी चांदी में तुले ये डायलॉग!
*** मुंतशिर
मैंने विरोध किया, “यह तो नाना बाल की खाल खींच ली आपने। मेरी समझ से बाहर का मामला हो गया, आप ही कुछ…”
नाना फैल गए,” ब्राह्मण के घर में जन्म, संस्कार विरासत में, नाम मनोज! पर इसे पसंद नहीं आया, उपनाम रखा : मुंतशिर, उर्दू शब्द,अर्थ है : बिखराव।
सारा भेद इसी उपनाम में है। बिखराव इसकी फितरत है और भारतीय संस्कृति का विरोध इसकी असलियत, जिसे इसने अभी तक मुंतशिर के लबादे में छुपाया हुआ था। अब मौका मिला, तो उजागर।”
मैंने टोका, “नाना, बहुत दूर खींच कर ले आए आप, इतना नहीं, उसने तो कहा है : डायलॉग लिखने जाने से पहले मैं कमरे के बाहर जूते उतार कर जाता था।”
नाना हंसे, “वह तो ठीक कह रहा है, आप ही नहीं समझे। मतलब है : मर्यादा पुरुषोत्तम राम के विरुद्ध अमर्यादित डायलॉग लिखने जा रहा हूं। जूते कमरे के बाहर हैं। उन्हीं से स्वागत करें। कृपया अपने जूतों को कष्ट ना दें।”
मैंने कहा, “छोड़िए नाना, चलिए चाय पीते हैं।”
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*** दूसरा भाग
अपराधी सेंसर बोर्ड भी है। उसकी भी जांच होनी चाहिए तीन बिंदुओं पर।
पहला, क्या उसने पैसा खाकर इस फिल्म को पास किया ?
दूसरा,क्या उसके मेंबर भारतीय संस्कृति के विरोधी हैं ?
तीसरा, क्या मेंबर अयोग्य हैं। उन्हें पता ही नहीं क्या सही है क्या गलत ?
बिंदु कोई भी सच हो, इस सेंसर बोर्ड को तुरंत बर्खास्त किया जाना चाहिए। पहले भी वह इस तरह की हिमाकत कर चुका है।
और फिल्म निर्माता ; उनके खिलाफ NSA क्यों नहीं लगाया जा सकता ? लगाया जाना चाहिए, तुरंत।
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